#कौन है वशिष्ठ
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#WhoIsThe_CompleteGuru
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।।
गुरू धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, वे दोनों व्यर्थ हैं। यदि आप जी को संदेह हो तो अपने वेदों तथा पुराणों में प्रमाण देखें।
श्रीमद् भगवत गीता चारों वेदों का सारांश है। गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि हे श्री कृष्ण! मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने अर्जुन से कहा कि तू मेरा भक्त है। पुराणों में प्रमाण है कि श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राज-काज में गुरू वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर कार्य करते थे। श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया तथा श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू श्री दुर्वासा ऋषि जी थे।
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात् समर्थ नहीं मानते हो। वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरू बनाकर अपनी भक्ति की, मानव जीवन सार्थक किया। इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरू के बिना भक्ति करता है तो कितना सही है? अर्थात् व्यर्थ है।
बिन सतगुरू पावै नहीं खालक खोज विचार।
चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।।
सतगुरू के बिना खालिक (परमात्मा) का विचार यानि यथार्थ ज्ञान नहीं मिलता। जिस कारण से संसार के व्यक्ति चौरासी ��ाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों को प्राप्त करते हैं क्योंकि वे सार नाम, मूल ज्ञान को नहीं पहचानते।
#SantRampalJiMaharaj #guru #guruji
#bhagavadgita
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#WhoIsThe_CompleteGuru
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।।
गुरू धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, वे दोनों व्यर्थ हैं। यदि आप जी को संदेह हो तो अपने वेदों तथा पुराणों में प्रमाण देखें।
श्रीमद् भगवत गीता चारों वेदों का सारांश है। गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि हे श्री कृष्ण! मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने अर्जुन से कहा कि तू मेरा भक्त है। पुराणों में प्रमाण है कि श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राज-काज में गुरू वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर कार्य करते थे। श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया तथा श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू श्री दुर्वासा ऋषि जी थे।
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात् समर्थ नहीं मानते हो। वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरू बनाकर अपनी भक्ति की, मानव जीवन सार्थक किया। इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरू के बिना भक्ति करता है तो कितना सही है? अर्थात् व्यर्थ है।
बिन सतगुरू पावै नहीं खालक खोज विचार।
चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।।
सतगुरू के बिना खालिक (परमात्मा) का विचार यानि यथार्थ ज्ञान नहीं मिलता। जिस कारण से संसार के व्यक्ति चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों को प्राप्त करते हैं क्योंकि वे सार नाम, मूल ज्ञान को नहीं पहचानते।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart67 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे स��के सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्��ष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि स्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इस��िए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध ह���आ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि स्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इसी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
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नकली धर्मगुरु मंडलेश्वरों ने आज तक जनता को यह नहीं बताया रामचंद्र जी के कृष्ण जी के गुरु कौन थे। श्री पूर्ण ब्रह्म जी श्री रामपाल जी भगवान जी ने सच्चाई बताया है रामचंद्र जी के गुरु वशिष्ठ मुनि कृष्ण जी के गुरु ऋषि दुर्वासा जी भक्ति करते थे आप लोगों के बुद्धि में नहीं आ रही है। श्री साईं बाबा जी ने बोला था सबका मालिक एक है आदि राम असली राम अविनाशी की खोज कीजिए जो मरने वाले नहीं है ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़े फ्री मंगा सकते हैं संपर्क करें मो 8222880541
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हिंदू धर्म में सप्तऋषि कौन थे और हिंदू धर्म में उनका योगदान?
हिंदू पौराणिक कथाओं में, “सप्तर्षि” (सप्तऋषि या सात संतों के रूप में भी लिखे गए) सात प्राचीन संत या द्रष्टा हैं जिन्होंने हिंदू परंपरा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्हें ब्रह्मांड के सात खगोलीय संरक्षक माना जाता है, और उनके नाम हैं:
अत्री भारद्वाज गौतम जमदग्नि काश्यप वशिष्ठ विश्वामित्र
इन सात संतों को कई वंशों के पूर्वज माना जाता है, और हिंदू धर्म में उनके योगदान में कई वैदिक भजनों की रचना, दार्शनिक ग्रंथ और विभिन्न आध्यात्मिक प्रथाओं की स्थापना शामिल है।
अत्री: अत्रि अपनी तपस्या और भगवान ब्रह्मा की भक्ति के लिए जाने जाते थे। उन्हें ऋग्वेद में कई भजनों की रचना करने का श्रेय दिया जाता है और वे ऋषि दुर्वासा के पिता थे।
भारद्वाज: भारद्वाज आयुर्वेद के विशेषज्ञ थे और कहा जाता है कि उन्होंने चिकित्सा पर कई ग्रंथ लिखे हैं। वह ऋषि भारद्वाज (इसी नाम के एक अन्य ऋषि) के शिष्य थे।
गौतम: गौतम अपनी बुद्धि और वेदों के ज्ञान के लिए जाने जाते थे। वह अहिल्या के पिता थे, जिन्हें भगवान इंद्र ने श्राप दिया था और बा�� में भगवान राम ने उन्हें मुक्त कर दिया था।
जमदग्नि: जमदग्नि एक शक्तिशाली ऋषि और भगवान विष्णु के अवतार परशुराम के पिता थे। वह अपनी तपस्या और भगवान शिव की भक्ति के लिए जाने जाते थे।
कश्यप: कश्यप एक महान ऋषि थे और कई पौराणिक प्राणियों के पिता थे, जिनमें देव, असुर, नाग और गरुड़ शामिल थे। उनका विवाह देवों की माता अदिति से हुआ था।
वशिष्ठ: वशिष्ठ एक ऋषि और भगवान राम के सलाहकार थे। उन्हें वेदों के अपने ज्ञान और हिंदू दर्शन को आकार देने में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता था। कहा जाता है कि उन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी।
विश्वामित्र: विश्वामित्र अपने पहले जीवन में एक शक्तिशाली ऋषि और राजा थे। वह अपनी तपस्या और राक्षस राजा रावण को हराने में भगवान राम की मदद करने में उनकी भूमिका के लिए जाने जाते हैं। ऋग्वेद में अनेक सूक्तों की रचना करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है।
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SA NewsTRUTH ONLY
HomeBlogsसच्चे गुरु की पहचान क्या है? जानिए प्रमाण सहित
सच्चे गुरु की पहचान क्या है? जानिए प्रमाण सहित
By:SA NEWS
Date:
April 17, 2022
आज हम आप को इस ब्लॉग के माध्यम से सच्चे गुरु की पहचान के बारे में बताएँगे, जैसे वर्तमान में सच्चा गुरु कौन है?, सच्चे गुरु को कैसे पहचाने?, सच्चा गुरु कहां और कैसे मिलेगा? आदि.
Table of Contents
सच्चे गुरु की पहचान
वर्तमान में सच्चा गुरु कौन है एवं उसकी पहचान क्या है?
नास्तिकता के पीछे का कारण क्या है?
पवित्र सदग्रंथों के आधार पर सच्चे सद्गुरु की पहचान
महान संतों के आधार पर सच्चे सतगुरु की पहचान क्या है?
परमात्मा साकार है या निराकार?
संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र सच्चे सतगुरु है
सच्चे गुरु की पहचान
भारतीय संस्कृति बहुत पुरातन है और इसमें गुरु बनाने की परंपरा भी बहुत पुरानी रही है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में एक गुरु अवश्य बनाता है ताकि गुरु उनके जीवन को नई सकारात्मक दिशा दिखा सके। जिस पर चलकर व्यक्ति अपने जीवन को सफल व सुखमय बना सके एवं मोक्ष प्राप्त कर सके।
गुरु की महत्ता को बताते हुए परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।
भावार्थ :- कबीर परमेश्वर जी हमें बता रहे हैं कि बिना गुरु के हमें ज्ञान नहीं हो सकता है। गुरु के बिना किया गया नाम जाप, भक्ति व दान- धर्म सभी व्यर्थ है।
■ उपर्युक्त लिखी गई कुछ पंक्तियां एवं दोहों से हमें यह तो समझ में आ गया कि बिना गुरु के ज्ञान एवं मोक्ष संभव नहीं है।
वर्तमान में व्यक्ति के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि यदि वह गुरु धारण करना चाहे तो वह किसे गुरु बनाए? उसकी सामर्थ्य और शक्ति का मापदंड कैसे निर्धारित किया जाए । वर्तमान में बड़ी संख्या में गुरु विद्यमान हैं और अधिकतर से धोखा ही धोखा है ऐसे हालात में क्या हम एक सच्चे और नेक गुरु को खोज पाएंगे? आज पूरे विश्व में धर्म गुरुओं व संतों की बाढ़ सी आई हुई है । मुमुक्षु को समझ में नहीं आता है कि सच्चा (अधिकारी) सतगुरु कौन है जिनसे नाम दीक्षा लेने से उसका मोक्ष संभव हो सकता है?
वर्तमान में सच्चा गुरु कौन है एवं उसकी पहचान क्या है?
वेदों, श्रीमद्भगवद गीता आदि पवित्र सद्ग्रंथों में प्रमाण मिलता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है व अधर्म की वृद्धि होती है तथा नकली संतों, महंतों और गुरुओं द्वारा भक्ति मार्ग के स्वरूप को बिगाड़ दिया गया होता है। तब परमेश्वर स्वंय आकर या अपने परम ज्ञानी संत को भेजकर सच्चे ज्ञान के द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करते हैं और भक्ति मार्ग को शास्त्रों के अनुसार समझाकर भगवान प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त करते हैं।
#GodMorningSaturday
पूर्ण गुरु की पहचान गीता जी अध्याय 15 मंत्र 1 से 4 में वर्णित है
In present time, Complete Guru is only Saint rampal ji Maharaj
अधिक जानकारी के देखी Saint Rampal ji Maharaj Satsang साधना चैनल पर 7:30 बजे#5thApril pic.twitter.com/5qQ7JoVWf3
— Harish Sethi 🇮🇳 (@Harish7Sethi) April 4, 2020
हमेशा से ही हम गुरु महिमा सुनते आए हैं । इतना तो हर कोई समझने लगा है कि गुरु परम्परा का जीवन मे बहुत महत्व है। एक बार सुखदेव ऋषि अपनी सिद्धि शक्ति से उड़कर स्वर्ग पहुच गए थे लेकिन विष्णु जी ने उन्हें यह कहकर स्वर्ग में स्थान नही दिया कि सुखदेव ऋषि जी आपका कोई गुरु नहीं है अंततः सुखदेव ऋषि को धरती पर वापस आकर राजा जनक जी को गुरु बनाना पड़ा था।कहने का तात्पर्य यह है कि गुरु ही सद्गति का एकमात्र जरिया है।
गु : अर्थात् अंधकार
रु : अर्थात् प्रकाश
गुरु ही मनुष्य को जन्म मरण के रोग रूपी अंधकार से पूर्ण मोक्ष रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। समाज में फैले अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, पाखंडवाद और अंधभक्ति की गहरी नींद से जगाकर समस्त जनसमूह को वास्तविक और प्रमाणित भक्ति प्रदान करते हैं।
इतिहास गवाह है कि जितने भी महापुरुष व संत इस धरती पर हुए हैं सभी ने गुरु किए चाहे वह विष्णु के अवतार राम हो या कृष्ण या फिर गुरु नानक देव जी ��ा गरीब दास जी महाराज। इन्होंने अंतिम स्वांस तक गुरु की मर्यादा में रहकर भक्ति की । श्री रामचंद्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाकर उनसे नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राजकाज में गुरु वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर ही कार्य करते थे।
कबीर,सतगुरु के दरबार मे, जाइयो बारम्बार
भूली वस्तु लखा देवे, है सतगुरु दातार।
हमे सच्चे गुरु की शरण मे आकर बार बार उनके दर्शनार्थ जाना चाहिए और ज्ञान सुनना चाहिए।
सच्चे गुरु की पहचान करने के लिए अवश्य पढ़ें गीता अध्याय 15 श्लोक 1#Secrets_Of_BhagavadGita
https://t.co/np4UYjfUaC
— Mãhëñdrâ Graphics Mahi 💻 (@Graphicssrdr) December 8, 2019
श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनी जी गुरु बना कर शिक्षा प्राप्त की थी। आज हम अक्षर ज्ञान तो ग्रहण कर रहे हैं लेकिन अध्यात्म ज्ञान से कोसों दूर होते जा रहें हैं और इतने सारे धर्मगुरु व संतों के होने के बावजूद भी लोग नास्तिकता की ओर बढ़ते जा रहे हैं और भगवान में हमारी आस्था खत्म होते जा रही है।
नास्तिकता के पीछे का कारण क्या है?
हमें जो भक्ति हमारे धर्म गुरुओं व संतों द्वारा दी जा रही है, क्या वह सही नहीं है? गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जो साधक शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न उसे कोई सुख प्राप्त होता है, न उसकी गति यानी मुक्ति होती है अर्थात् शास्त्र के विपरीत भक्ति करना व्यर्थ है।
सच्चे गुरु की पहचान: तो क्या आज तक भक्त समाज को सच्चा सतगुरु नहीं मिला है। गीता ज्ञान दाता खुद बोल रहा है कि शास्त्र विरुद्ध साधना व्यर्थ है और अनअधिकारी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से हमें कोई लाभ मिलने वाला नहीं है अर्थात हमें सच्चा सद्गुरु ढूंढना होगा। तो चलिए हमारा जो प्रश्न था कि सच्चा सतगुरु कौन है हम इस प्रश्न का उत्तर जानने की कोशिश करते हैं और देखते हैं कि हमारे सद्ग्रंथ व जिन महान संतों को परमात्मा खुद आकर मिले थे अपने तत्वज्ञान से परिचित कराया था उन्होंने सच्चे सद्गुरु की क्या पहचान बताई है?
पवित्र सदग्रंथों के आधार पर सच्चे सद्गुरु की पहचान
सबसे पहले हम पवित्र गीता जी से प्रमाण देखते हैं। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत (सच्चा सतगुरु) की पहचान बताते हुए कहा है कि वह संत संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात जड़ से लेकर पत्ती तक का विस्तारपूर्वक ज्ञान कराएगा।
यजुर्वेद अध्याय 19 के मंत्र 25 व 26 में लिखा है कि वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा। वह तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार एवं संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है।
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273 भरत वशिष्ठ संवाद
भरत जी कहते हैं, गुरु जी! मैं आर्त हूँ, ठगा गया हूँ, विधि ने मुझे ठगा है, ऐसा कौन सा कुकर्म है जो मैं नहीं कर सकता।गुरु जी, लोग मेरे लिए चाहे जैसा बोलते हों, मुझे दुख नहीं, पिता जी स्वर्ग चले गए, उसका भी मुझे दुख नहीं, आपके सम्मुख उत्तर देता हूँ और मेरा हृदय फट नहीं जाता, इसका भी दुख नहीं।पर मुझे एक बात का दुख है कि श्रीसीतारामजी को मेरे कारण कष्ट सहना पड़ रहा है, इस सारे अनर्थ का कारण मैं हूँ।…
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श्री राम जी का विवाह तय हुआ आज का नहीं तीन दिन बाद का शुभ लग्न उत्तम है यह कह कर महर्षि वशिष्ठ ने विवाह करवाया ।
कबीर साहब जी कहते हैं
वशिष्ठ से तत्त्ववेत्ता योगी , शौध कर लग्न धरे ।
सीता हरण मरण दशरथ को , वन वन राम फिरे ।।
महर्षि वशिष्ठ जी ने कौन सा भविष्य बदल दिया ...? हुआ वहीं जो विधाता ने लिख रखा था ।
कबीर , मासा घटे ना तिल बढ़े , विधना लिखे जो लेख ।
सांचा सतगुरु काट कर ऊपर मारे मेख ।।
कबीर परमेश्वर की भक्ति अपनाईये नौ ग्रह नमन करेंगे और प्रारब्ध में मौत भी होगी तो परमात्मा टाल देगें ।
तत्वज्ञान हीन बाबा इसलिए हावी होते है क्युकीं लोगो को तत्वज्ञान नहीं इसलिए हर कोई बना कर चला जाता है ।
#kabir_is_parameshwer
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*राम बडे है या वशिष्ठ❓* *कोई भी हिंदू कहेगा भगवान राम से बडा तीनो लोक मे कौन❓* *अरे रुकिए जनाब👈 तुलसीदास दूसरे ही प्रोजेक्ट मे लगे थे👈* *उन्होने रामचरितमानस (उत्तरकांड, 47:1) मे लिखा है कि राम ने वशिष्ठ के पैर धोए और वह पानी पी गए|👈* *वशिष्ठ की जाति मुझसे न पूछे👈* *तुलसीदास ने ठाकुरो को वर्ण क्रम मे नीचे प्लेस किया है|* *रामचरितमानस मे सभी लोग राम के पैर छूते है और राम वशिष्ठ का पैर धोकर पीते है|* *तो सबसे ऊपर कौन❓* *#तुलसीदास_पोलखोल* -Dilip C Mandal (at Delhi, India) https://www.instagram.com/p/CoINoj1sMKP/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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थ्रोबैक: जब इलेक्ट्रिक शॉक देकर बचाई गई गेहाना वशिष्ठ की, शूट ऑन हो गई तो बेहोश हो गए
थ्रोबैक: जब इलेक्ट्रिक शॉक देकर बचाई गई गेहाना वशिष्ठ की, शूट ऑन हो गई तो बेहोश हो गए
देखने वाली फिल्में बनाने के आरोप में मुंबई क्राइम ब्रांच ने शुक्रवार को 5 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें वाल्व वशिष्ठ का नाम भी शामिल है। उन पर यह आरोप भी है कि उन्होंने 85 से ज्यादा रिंगटोन फिल्में बनाई हैं। अबसे पहले वाल्व उस वक्त चर्चा में आई थी जब उन्हें शूटिंग के दौरान कार्डिएक अरेस्ट आ गया था और बचाना मुश्किल हो गया था। हो गए थे बेहोश, कार्डिएक अरेस्ट से हालत खराब यह साल 2019 की बात है।…
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#अभिनेत्री गेहना वशिष्ठ#कौन है वशिष्ठ#गेहं वसिष्ठ गन्दी बाट#गेहना वशीकरण चित्र#गेहना वशीकरण बिजली का झटका#गेहना वसिष्ठ#गेहना वसिष्ठ अश्लील गिरफ्तार#घाट वशिष्ठ गिरफ्तार#जिहना वशिष्ठ विकी#टीवी मसाला न्यूज़#टीवी मसाला न्यूज़ हिंदी में#टीवी मसाला हेडलाइंस#नवीनतम टीवी मसाला समाचार#भूषण वश्य समाचार#वंदना तिवारी#वशिष्ठ संवाददाता#वाल्व वशिष्ठ एक्ट्रेस#समाचर
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ramaya rambhadray
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥
(श्रीरामरक्षास्तोत्र; पद्मपुराणादि)
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rāmāya rāmabhadrāya rāmacandrāya vēdhasē ।
raghunāthāya nāthāya sītāyāḥ patayē namaḥ ॥
(Śrī Rāmarakṣāstōtra; Padma-purāṇ etc)
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“भगवान् श्रीराम, रामभद्र, रामचन्द्र, सर्वकारणों के कारण परम-कर्ता (वेधस), रघुनाथ, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी (नाथ), सीतापति को नमस्कार है!”
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“My salutations to Bhagavān Śrī Rāma; To Shri Rāmabadhra, To Shri Rāmachandra, To the cause of all causes (vēdhasē), To the Lord of Raghus (Raghunāth), To the lord of all the worlds (Nāth), And to the Lord (husband) of Sītā (Sītāpati).”
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प्रभु को विभिन्न भाव से कौन कैसे पुकारता है?
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ब्रह्मर्षि वशिष्ठ, शिव इत्यादि प्रभु को “राम” कहते हैं, तो महाराज दशरथ प्रभु को प्रेम से “रामभद्र” कहते हैं, महारानी कौसल्या अपने लाल का मुखचुम्बन कर “रामचंद्र” कहती हैं, वेदों के ऋषि “वेधस” (परमकारण-कर्ता) कहते हैं (ऋग्वेदे ५.४३.१२ । “आ वेधसं नीलपृष्ठं बृहन्तम् ।”), प्रभु की प्रजा उन्हें हमारे नाथ “रघुनाथजी” कहती है (अर्थात् जीवों [रघु] के नाथ); सीता जी प्रभु को “नाथ” (मेरे स्वामि!) कहती हैं; और प्रभु के सखा-सखियाँ प्रभु को “सीतापति” कहते हैं!
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Who addresses Śrī Rāma how in their different Bhaavas?
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Lord Śhiva, Brahmarṣi Vaśiṣṭha, etc call Prabhu “Rāma”; Mahārāj Dasarath calls him “Rāmabhadra” (Rāma who is most virtuous, gentle, lovely etc) with love; Mahārānī Kausalyā kisses and smells the full-moon like face of her son and calls him “Rāmachandra” (Rāma who has full moon like face pleasing to all), some sages of Vedas call him “Vēdhasa” (the supreme cause / creator of all e.g. - “ā vēdhasaṃ nīlapṛṣṭhaṃ bṛhantam ..” [ṛgvēd 5.43.12]), the subject (or devotees) of Prabhu call him Our Nāth “Raghunāth” (i.e. the Lord of all Jivas [Raghus]); Sītā Jī calls him “Nāth” (Mērē Svāmi!); and the Sakhā-sakhis of Prabhu calls him “Sītāpati” (the husband of Sītā)!
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SītāRāma-kinkar,
SiyāRāghavendra Sharan
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart67 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68
"सर्व श्रेष्ठ तीर्थ"
प्रश्न 47:- सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है जिससे सर्व तीर्थों से अधिक लाभ मिलता है?
उत्तर :- सर्व श्रेष्ठ चित्तशुद्धि तीर्थ है।
चित्तशुद्धि तीर्थ अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्त का सत्संग सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ :- श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित्तशुद्धि तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धि तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात् तत्त्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चित्तशुद्धि होना बहुत कठिन है। वशिष्ठ जी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने वेद और विद्या का सम्यक प्रकार से अध्ययन किया था। गंगा के तट पर निवास करते थे। तथापि द्वेष के कारण उनका विश्वामित्र के साथ वैमनस्य हो गया और दोनों ने परस्पर श्राप दे दिए तथा उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। इससे सिद्ध हुआ कि संतों के सत्संग से चित्तशुद्धि कर लेना अति आवश्यक है अन्यथा वेद ज्ञान, तप, व्रत, तीर्थ, दान तथा धर्म के जितने साधन है वे सबके सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते (श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
* विशेष विचार :- उपरोक्त श्री देवी पुराण के लेख से स्पष्ट है कि तत्त्वदर्शी
सन्तों के सत्संग से श्रेष्ठ कोई भी तीर्थ नहीं है तथा तत्त्वदृष्टा सन्त के बताए मार्ग से साधना करने से कल्याण सम्भव है। तीर्थ, व्रत, तप, दान आदि व्यर्थ प्रयत्न है। तत्त्वदर्शी सन्त के अभाव के कारण केवल चारों वेदों में वर्णित भक्ति विधि से पूर्ण मोक्ष लाभ नहीं है।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है :-
सतगुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी ।।
सतगुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छिट्टै मूढ किसाना ।। अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै सर्व फल सतगुरू चरणा पावै।।
कबीर तीर्थ करि-करि जग मुआ, उड़ै पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटें जाय ।।
सूक्ष्मवेद (तत्त्वज्ञान) में कहा है कि :-
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै ।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम है जेते ।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो ।। कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै ।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै ।। सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी ।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना ।।
सरलार्थ :- पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थों और धामों पर जाने से कोई पुण्य लाभ नहीं। असली तीर्थ सतगुरू (तत्त्वदर्शी संत) का सत्संग सुनने जाना है। जहाँ तत्त्वदर्शी संत का सत्संग होता है, वह सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तथा धाम है।
इसी कथन का साक्षी संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण भी है। उसमें छठे स्कंद के अध्याय 10 में लिखा है कि सर्व श्रेष्ठ तीर्थ तो चित शुद्ध तीर्थ है। जहाँ तत्वदर्शी संत का सत्संग चल रहा है। उसके अध्यात्म ज्ञान से चित की शुद्धि होती है। शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान तथा शास्त्रोक्त भक्ति विधि का ज्ञान होता है जिससे जीव का कल्याण होता है। अन्य तीर्थ मात्र भ्रम हैं।
इसी पुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि सतगुरू तो कल्पवृक्ष तथा कामधेनू के समान है। जैसे पुराणों में कहा है कि स्वर्ग में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु हैं। उनसे जो भी माँगो, सब सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं।
इ��ी प्रकार सतगुरू जी सत्य साधना बताकर सर्व लाभ साधक को प्रदान करवा देते हैं तथा अपने आशीर्वाद से भी अनेकों लाभ देते हैं। भक्ति करवाकर मुक्ति की राह आसान कर देते हैं। इसलिए कहा है :- कि एकै साधै सब सधै, सब साधैं सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।
शब्दार्थ :- एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सब लाभ मिल जाता है। सब तीर्थों-धामों व अन्य अंध श्रद्धा भक्ति से सब लाभ समाप्त हो जाते हैं। जैसे आम के पौधे की एक जड़ की सिंचाई करने से पौधा विकसित होकर पेड़ बनकर बहुत फल देता है।
यदि पौधे को उल्टा करके जमीन में गढ़ढ़े में शाखाओं की ओर से रोपकर शाखाओं की सिंचाई करेंगे तो पौधा नष्ट हो जाता है। कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए एक सतगुरू रूप तीर्थ पर जाने से सर्व लाभ मिल जाता है।
जैसा कि संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में लिखा है कि सतगुरू रूप तीर्थ मिलना अति दुर्लभ है, परंतु आप जी को सतगुरू रूप तीर्थ अति शुलभ है। यह दास (लेखक रामपाल दास) विश्व में एकमात्र सतगुरू तीर्थ यानि तत्वज्ञानी है। आओ और सत्य भक्ति प्राप्त करके जीवन सफल बनाओ।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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हिंदू धर्म का सबसे प्राचीन धर्म शास्त्र कौन सा है?
हिंदू धर्म का सबसे प्राचीन धर्म शास्त्र कौन सा है?
हिंदू धर्म का सबसे प्राचीन धर्म शास्त्र वेदों को माना गया है और वेदों में सबसे प्राचीन वेद शास्त्र ऋग्वेद को माना जाता है। हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन धर्म शास्त्र ऋग्वेद को महान महान ऋषि यों द्वारा लिखा गया है। सबसे प्राचीन हिंदू धर्म शास्त्र ऋग्वेद के लेखक के रूप में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ आदि को जाना जाता है। जितने भी महान ऋषि हिंदू धर्म में हुए उन्होंने अपने…
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भरत जी कहते हैं, गुरु जी! मैं आर्त हूँ, ठगा गया हूँ, विधि ने मुझे ठगा है, ऐसा कौन सा कुकर्म है जो मैं नहीं कर सकता। गुरु जी, लोग मेरे लिए चाहे जैसा बोलते हों, मुझे दुख नहीं, पिता जी स्वर्ग चले गए, उसका भी मुझे दुख नहीं, आपके सम्मुख उत्तर देता हूँ और मेरा हृदय फट नहीं जाता, इसका भी दुख नहीं। पर मुझे एक बात का दुख है कि श्रीसीतारामजी को मेरे कारण कष्ट सहना पड़ रहा है, इस सारे अनर्थ का कारण मैं हूँ। कैकेयी का पुत्र कैकेयी से भी अधम है क्योंकि कारण से कार्य कठिन होता ही है। यह तो वह सिंहासन है जिस पर भागीरथ बैठते थे, दिलीप, हरीशचंद्र, महाराज रघु बैठते थे, इसपर मुझ पापी को बिठाइएगा तो पृथ्वी रसातल में डूब जाएगी। मैं ही अयोध्या के दुख का एकमात्र कारण हूँ, मेरे में इसे हाथ से छूने भर की भी योग्यता नहीं है। गुरु जी ने पूछा, भरत! इस पृथ्वी पर हिरण्यकशिपु जैसे राजा हो गए, रावण जैसे राजा हैं, तब भी पृथ्वी रसातल को नहीं गई, तुम्हारे बैठने से चली जाएगी? भरत जी ने कहा, गुरु जी! वो तो राम जी के कुछ नहीं थे, वे पाप करके राजा हो गए इसमें हैरानी नहीं, पर यदि राम का भाई भी वैसा ही करेगा तब तो पृथ्वी रसातल को चली ही जाएगी। फिर भी गुरु जी, यदि पिता जी की आज्ञा मानने न मानने का प्रश्न है, तो उन्होंने स्वयं मुझे राजपद दिया है, माने राजा का पद दिया है, राजा तो रामचन्द्र जी हैं, और आपने ही पढ़ाया था कि पद माने चरण होता है, मुझे तो प्रिय पिता जी ने राम जी के चरणों की सेवा दी है। मैं तो उन्हीं चरणों में जाऊँगा गुरु जी! मैं सिंहासन पर नहीं बैठूंगा। देखें, किस प्रकार से सच्चा संत बड़े से बड़े सिंहासन को भी ठोकर मार कर, राम जी जिस मार्ग पर चले, उस मार्ग का अवलम्बन करता है। अब विडियो देखें- भरत वशिष्ठ संवाद https://youtu.be/Prno51D86U0 http://shashwatatripti.wordpress.com #ramrajyamission #ramcharitmanas https://www.instagram.com/p/CWCeauTBvkf/?utm_medium=tumblr
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🚩महाशिवरात्रि का ऐसा है इतिहास, इसदिन शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न-09 मार्च 2021
🚩तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि है ।महाशिवरात्रि भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम से मनाई जाती है ।
🚩‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में शिवरात्रि के उपवास तथा जागरण की महिमा का वर्णन है : ‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है । लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है ।
🚩शिवलिंग का प्रागट्य!
🚩पुराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन?’ इस बात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी।
🚩भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए। दोनों ने उस शिवलिंग की पूजा की। यह विराट शिवलिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया।
🚩बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"।
🚩1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थापित है।
🚩2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है।
🚩3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
🚩4. ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने हेतु यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
🚩5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
🚩6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
🚩7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
🚩8. त्र्यंम्बकेश्वर (महाराष्ट्र) नासिक से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
🚩9. घुश्मेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग।
🚩10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मील दूरी पर स्थित है।
🚩11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
🚩12. रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।
🚩दूसरी पुराणों में ये कथा आती है कि सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था उस समय भगवान शिव ने सं���ूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही सारा विषपान कर लिया था। विष पीने से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से पुकारे जाने लगे। पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
🚩कई जगहों पर ऐसा भी वर्णन आता है कि शिव पार्वती का उस दिन विवाह हुआ था इसलिए भी इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाने की परंपरा रही है।
🚩पुराणों अनुसार ये भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।
🚩शिवरात्रि वैसे तो प्रत्येक मास की चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष) को होती है परन्तु फाल्गुन (कृष्ण पक्ष) की शिवरात्रि (महाशिवरात्रि) नाम से ही प्रसिद्ध है।
🚩महाशिवरात्रि से संबधित पौराणिक कथा!!
🚩एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?
🚩उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था । पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'
🚩शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
🚩पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरी। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
🚩कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।
🚩शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
🚩मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उप��्थित हो जाऊंगा।
🚩मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
🚩थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।
🚩परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिससे मानव प्रणाली में ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है इसलिए इस रात जागरण की सलाह भी दी गयी है ।
🚩शिवरात्रि व्रत की महिमा!!
🚩इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है ।
🚩महाशिवरात्रि व्रत की विधि!!
इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में "ॐ नम: शिवाय" का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है । चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जपों से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।
🚩फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात् महाशिवरात्रि पृथ्वी पर शिवलिंग के प्राकट्य का दिवस है और प्राकृतिक नियम के अनुसार जीव-शिव के एकत्व में मदद करनेवाले ग्रह-नक्षत्रों के योग का दिवस है । इस दिन रात्रि-जागरण कर ईश्वर की आराधना-उपासना की जाती है । ‘शिव से तात्पर्य है ‘कल्याणङ्क अर्थात् यह रात्रि बडी कल्याणकारी रात्रि है ।
🚩महाशिवरात्रि का पर्व अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है । आत्मकल्याण के लिए पांडवों ने भी शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन किया था, जिसमें सम्मिलित होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका से हस्तिनापुर आये थे । जिन्हें संसार से सुख-वैभव लेने की इच्छा होती है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं और जिन्हें सद्गति प्राप्त करनी होती है अथवा आत्मकल्याण में रुचि है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं ।
शिवपूजा में वस्तु का मूल्य नहीं, भाव का मूल्य है । भावो हि विद्यते देवः । आराधना का एक तरीका यह है कि उपवास रखकर पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्रादि से चार प्रहर पूजा की जाये । दूसरा तरीका यह है कि मानसिक पूजा की जाये ।
🚩 हम मन-ही-मन भावना करें :
ज्योतिर्मात्रस्वरूपाय निर्मलज्ञानचक्षुषे । नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिंगमूर्तये ।।
‘ज्योतिमात्र (ज्ञानज्योति अर्थात् सच्चिदानंद, साक्षी) जिनका स्वरूप है, निर्मल ज्ञान ही जिनके नेत्र है, जो लिंगस्वरूप ब्रह्म हैं, उन परम शांत कल्याणमय भगवान शिव को नमस्कार है ।
🚩‘ईशान संहिता में भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं : फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी । तस्या या तामसी रात्रि सोच्यते शिवरात्रिका ।।तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां ध्रुवम् । न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया । तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः ।।
🚩‘फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय करके जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है, उसीको ‘शिवरात्रि' कहते हैं । उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है । उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान कराने से तथा वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता ।
🚩शिवरात्रि व्रत सभी पापों का नाश करनेवाला है और यह योग एवं मोक्ष की प्रधानतावाला व्रत है ।
🚩महाशिवरात्रि बड़ी कल्याणकारी रात्रि है । इस रात्रि में किये जानेवाले जप, तप और व्रत हजारों गुणा पुण्य प्रदान करते हैं ।
🚩स्कंद पुराण में आता है : ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढकर श्रेष्ठ कुछ नहीं है । जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है ।
🚩यदि महाशिवरात्रि के दिन ‘बं' बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोड़ों के दर्द एवं वायु-सम्बंधी रोगों में विशेष लाभ होता है ।
🚩व्रत में श्रद्��ा, उपवास एवं प्रार्थना की प्रधानता होती है । व्रत नास्तिक को आस्तिक, भोगी को योगी, स्वार्थी को परमार्थी, कृपण को उदार, अधीर को धीर, असहिष्णु को सहिष्णु बनाता है । जिनके जीवन में व्रत और नियमनिष्ठा है, उनके जीवन में निखार आ जाता है
स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित "ऋषि प्रसाद पत्रिका"
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